भाजपा शिव सेना मतभेद
आगामी बिहार चुनाव तक की नौटंकी
वीरेन्द्र जैन
भाजपा और शिवसेना का गठबन्धन बहुत पुराना व परस्पर एक दूसरे पर अश्रित है, पर इसके बाबज़ूद भी अपनी सत्ता लोलुपता में घिर कर भाजपा हमेशा ही शिव सेना के नखरे सहती रही है। दूसरी ओर शिव सेना ने भाजपा की इस कमजोरी का हमेशा ही लाभ उठाया है। बाल ठाकरे तत्कालीन महाराष्ट्र शासन द्वारा कम्युनिष्ट नेताओं से मुकाबला करने हेतु प्रोत्साहित किये गये बाहुबलियों के नेता की तरह उभरे थे और बम्बई की कपड़ा मिल की हड़ताल को तोड़ने के लिये कामरेड कृष्णा देसाई की हत्या के लिये शिव सेना ही ज़िम्मेवार रही। यह हमेशा ही होता रहा है कि किसी बाहुबली को अपनी शक्ति का भान हो जाने के बाद वह अपने आश्रयदाता को ही शिकार बनाने लगता है क्योंकि उसे लगता है कि मैं इसके कारण नहीं हूं अपितु ये हमारे कारण हैं।
अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाने के लिये उसने बम्बई में रह रहे दूसरे प्रदेशों के लोगों को निशाना बनाया ताकि मराठी लोगों की स्थानीयता को उभार कर अपना समर्थन जुटाया जा सके। एक बन्दरगाह होने के कारण बम्बई औद्योगिक रूप से विकसित शहर था तथा हिन्दी फिल्म आदि उद्योगों के तीव्र विकास के साथ देश की आर्थिक राजधानी की तरह उभरा जिससे वहाँ पूरे देश के लोग आते गये और बसते गये। कुछ मुस्लिम स्मगलरों और माफिया से प्रतियोगिता के चक्कर में शिव सेना प्रमुख ने हिन्दुत्व का सहारा लिया जिसके परिणाम स्वरूप वे हिन्दुत्ववादी मराठी अस्मिता के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सैंकने लगे। दूसरी ओर हिन्दुत्व की राजनीति करने वाले संघ परिवार का मुख्यालय भी महाराष्ट्र में ही स्थित था और उसके सारे प्रमुख पदों पर मराठियोँ को ही प्राथिमिकता दी जाती थी। यही कारण रहा कि जनसंघ और शिव सेना लम्बे समय तक एक दूसरे की काट करते रहे।
1967 के आसपास जब गैर कांग्रेसवाद के नारे पर जनसंघ के नेताओं को संविद सरकारों में सम्मलित होकर सत्ता का स्वाद मिला तब से उसे गठबन्धन की राजनीति ऐसी भायी कि उसने सदैव हर तरह की संविद सरकारों में सम्मलित होने के लिये अपने आप को प्रस्तुत किया। जनता पार्टी की सरकार में सम्मलित होने के लिये तो उन्होंने अपनी जनसंघ पार्टी को ही विलीन कर दिया था। रोचक यह भी है कि लगभग सभी संविद सरकारें इन्हीं की सता की भूख के कारण ही टूटी भीं। विश्वनाथ प्रसाद सिंह की सरकार जब भाजपा और बाम पंथियों के संयुक्त समर्थन पर ही बन सकी तब बाम पंथियों ने यह कह कर कि वे स्वयं सरकार में सम्मलित नहीं होंगे और समर्थन भी तभी देंगे जब भाजपा को सरकार में शामिल न किया जाये, ये पहली बार ये किसी संविद सरकार से बाहर रहने को मजबूर हुये थे और बाद में तो इन्होंने विश्वनाथ प्रसाद सिंह की सरकार गिराने में कांग्रेस की मदद भी की थी।
लगभग इसी काल से भाजपा और शिव सेना का गठबन्धन प्रारम्भ हुआ और भाजपा ने बाल ठाकरे की शर्तों पर गठबन्धन बनाये रखा और कभी भी शिव सेना का आसरा नहीं छोड़ा। जब भाजपा ने यूपी में सत्ता के लिये बहुजन समाज पार्टी से छह छह महीने शासन करने का बेहद अनैतिक समझौता किया तब व्यंग्य में बाल ठाकरे ने कहा था कि यह छह छह महीने का शासन क्या होता है! अरे अगर कुछ पैदा ही करना था तो कम से कम नौ नौ महीने का समझौता करना चाहिये था। इस वक्रोति को वे चुपचाप पी गये। अटल बिहारी के प्रधानमंत्रित्व काल में इन्होंने पाकिस्तान को क्रिकेट न खेलने देने के खिलाफ पिच खोद दी थी और दूरदर्शन समाचार के अनुसार अटल बिहारी ने उनसे ऐसा न करने के लिये ‘विनय’ की। उनके ही कार्यकाल में ठाकरे ने अपने पिता के नाम पर डाक टिकिट ज़ारी करवा लिया जिसकी भरपूर आलोचना हुयी, पर भाजपा को कोई फर्क नहीं पड़ा। सीटों के तालमेल में भी उन्होंने सदैव ही भाजपा को तय फार्मूला से कम सीटें दीं अन्यथा समझौता तोड़ लेने की धमकी दी पर भाजपा ने उसे भी स्वीकार कर लिया। राष्ट्रपति के गत चुनावों में उन्होंने मराठी अस्मिता के नाम पर कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन किया और भाजपा हाथ मलती रह गयी। लोकसभा चुनावों के दौरान प्रारम्भिक दौर में उन्होंने भाजपा के प्रधान मंत्री पद प्रत्याशी लाल कृष्ण आडवाणी से मिलने से ही इंकार कर दिया था पर बाद में बड़े मान मनौवल के बाद मुलाकात हो सकी।
जब राज ठाकरे ने बाल ठाकरे से विद्रोह कर दिया और अपनी राजनीति जमाने के लिये उत्तर भारतीयों पर हमले कर के सुर्खियां बटोरीं तब बाल ठाकरे को भी अपनी राजनीति को बचाने के लिये वैसे ही बयान देने पड़े ताकि राज ठाकरे से बड़ी लकीर बनाये रख सकें, तब भाजपा किंकर्तव्यविमूढ होकर रह गयी थी और अपने मुँह में दही जमा लिया था। किंतु पिछले दिनों जब शिवसेना ने शाहरुख खान की फिल्म ‘माय नेम इज खान’ के प्रदर्शन पर हिंसक प्रदर्शन की घोषणा की तो भाजपा ने शिवसेना का विरोध और शाहरुख की फिल्म का समर्थन् करते हुये यह भी जोड़ा कि देश के किसी भी नागरिक को कहीं भी रहने का अधिकार है। यह बयान भाजपा के उस प्रवक्ता से दिलवाया गया जो बिहार के रहने वाले हैं।
दर असल उक्त बयान भाजपा की सोची समझी रणनीति के अंतर्गत उठाया गया कदम है। इन दिनों भाजपा बिहार की सरकार में शामिल है और जल्दी ही बिहार में चुनाव होने वाले हैं। भाजपा गठबन्धन के सहयोगी शिव सेना परिवार द्वारा मुम्बई में बिहारियों के खिलाफ जो हिंसा की गयी है वह बिहार के चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बन सकता है, इसलिये चुनाव तक उन्होंने शिव सेना परिवार से दूरी दिखाने की राजनीति अपना ली है किंतु साथ ही यह कहना भी नहीं भूले कि हमारा गठबन्धन बना रहेगा। बाल ठाकरे द्वारा इस विषय पर कोई तीखी प्रतिक्रिया न करने से भी ये साफ है कि यह मिली जुली कुश्ती है और केवल बिहार की जनता को चुनाव तक बहलाने के लिये है।
वीरेन्द्र जैन
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भंग का रंग खूब चकाचक चढाया है...
जवाब देंहटाएंलगता है कि आप बिहार का कल्याण नहीं चाहते, लालू के कल्याण के लिये लिख रहे हैं। ( या 'मेडम क्लाइव' के लिये? )
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