भारतीयता के मुखौटे का पाखंड उत्सव
वीरेन्द्र जैन
गत दिनों अपनी पार्टी शासित राज्य मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इन्दौर में भाजपा का वार्षिक अधिवेशन अयोजित हुआ जिसमें संघ द्वारा आरोपित पार्टी के नये अध्यक्ष नितिन गडकरी ने अपने प्रवचनों में भले ही चरित्र सुधारने को प्रमुखता दी हो किंतु अधिवेशन स्थल पर केवल छवि सुधारने के प्रयास किये गये और इस प्रयास में किये गये पाखण्ड दर पाखण्ड से पार्टी में किसी सार्थक परिवर्तन की कोई उम्मीद नहीं जगी। पिछले फाइव स्टार संस्कृति में आयोजित पार्टी के अधिवेशनों से पार्टी की जो छवि बिगड़ी थी उसकी मरम्मत करने के लिये जो कुछ किया गया वह सूट पर धोती बांध कर पूजा निबटा लेने जैसा दृष्य पैदा कर रहा था। आज भाजपा जिस भ्रष्टाचार के नवनीत से परिचालित हो रही है उससे अभ्यस्त जीवन जीने के आदी हो चुके व्यक्तियों द्वारा सादगी सम्भव भी नहीं है। किंतु इस परम्परावादी देश में अभी भी त्याग, बलिदान और सादगी का जो सम्मान है उसकी नकल में वैसा ही ढोंग करने की फूहड़ कोशिश अवश्य हुयी। अधिवेशन की ज़िम्मेवारी श्री कैलाश विजयवर्गीय को सौंपी गयी थी जिनके खिलाफ पेंशन घोटाले से लेकर सिंहस्थ आदि की कई जाँचें लम्बित हैं और उन घिसिट रही जाँचों की तुलना में कई गुना आरोप हवा में तैर रहे हैं। उन्हें भाजपा में दूसरा प्रमोद महाजन समझा जाता है। अधिवेशन स्थल का नामकरण भले ही कुशाभाउ ठाकरे के नाम पर रखा गया हो जो संघी राजनीति में समर्पित कार्यकर्ताओं की पीढी के अंतिम लोगों में से थे किंतु इस अवसर पर इन्दौर के समर्पित कार्यकर्ता लक्षमण सिंह गौड़ को उचित ढंग से याद करने की ज़रूरत नहीं समझी गयी जो इन्दौर में कैलाश विजयवर्गीय की संस्कृति के विरोधी थे और इसी नाते मालवा अंचल में संतुलन बनाने के लिये उन्हें मंत्री बनाया गया था किंतु मंत्री बनने के कुछ ही दिनों बाद वे एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गये थे। इन्दौर में भाई[कैलाश विजय वर्गीय] और ताई[सुमित्रा महाजन] का झगड़ा भी मशहूर है इसीलिये ताई को रसोई की नाम मात्र ज़िम्मेवारी को छोड़ कर दूसरी कोई ज़िम्मेवारी नहीं सौंपी गयी जबकि वे वहाँ से दशकों से सांसद हैं। उनसे ज्यादा महत्व तो कैलाश विजयवर्गीय के खास विधायक रमेश मेन्दोला को दिया गया।
राहुल गांधी ने दलितों के घर रुक कर और उनके यहाँ भोजन करके जो मानक स्थापित कर दिया है उसकी नकल में भाजपा अध्यक्ष ने भी एक दलित के घर जाकर भोजन करने का ड्रामा खेला और फाइव स्टार होटल के अन्दाज़ में ‘टावल’ से हाथ पौंछे। एसी लगे टेंटों में खरहरी खाट और मूढे पर बैठ कर भले ही फोटो खिंचवाये गये हों किंतु सुविधाओं का कोई अभाव कहीं नहीं था, फिर भी सुविधाओं की कमी का रोना रोकर कुछ न्यूज़ बनवाने की प्रायोजित कोशिश की गयी। जैसे गडकरी को रात में सर्दी लगी और नींद नहीं आयी। राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जैटल्री को व्यवस्थायें बहुत ‘पुअर’ लगीं, सुरक्षा में सुषमा स्वराज तक की गाड़ी को कुछ देर तक रोक कर कड़ी और भेदभाव रहित सुरक्षा का संकेत दिया गया, अव्यवस्था के नाम पर मनेका गान्धी और वरुण गान्धी अधिवेशन छोड़ कर दिल्ली लौट गये तथा सुषमा स्वराज, शत्रुघ्न सिन्हा, अरुण जैटली और नवजोत सिंह सिद्धू अधिवेशन स्थल छोड़ कर नगर के बड़े बड़े होटलों में चले गये।
कभी हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान का नारा देकर देश के बँटवारे को हवा देने वाले संगठन से निकली पार्टी, टेंट पर अपने अध्यक्ष का नाम भी हिन्दी में सही नहीं लिख सकी और नितिन गडकरी की जगह ‘नितीन’ गडकरी लिखा देख कर उनकी पत्नी की त्योरियाँ चढ गयीं और उन्हें ‘गाड’ याद आ गया [राम याद नहीं आये, वे तो गान्धीजी को यद आते थे]। उन्होंने कहा- ओह गाड ये तो भाषा भी सही नहीं लिख सकते। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश की प्रदर्शिनियों के नाम पर प्रदेश के संस्कृति विभाग के कई अधिकारी कर्मचारी अधिवेशन स्थल पर अपनी सेवायें दे रहे थे तब भी ऐसी भूलें घटित हुयीं। श्रीमती गडकरी के पति अपनी पार्टी को फिर से राम जन्म भूमि मन्दिर के सहारे आगे बढाने की सोच रहे हैं किंतु श्रीमती गडकरी को गाड ही याद आता है। उस भली महिला को कोई छद्म नहीं आता इसलिये उसने सुन्दर इन्दौर शहर को “ब्यूटीफुल”” ही कहा।
सच है कि सादगी सहजता में होती है बनावट में नहीं होती।
अधिवेशन स्थल पर कुछ लोगों को चाय पानी की तो तकलीफ हुयी किंतु मनेका गान्धी के संतोष के लिये वहाँ विशेष रूप से बकरियाँ बाँधी गयी थीं जिनको उन्होंने कई बार चारा खिलाकर जंगली जानवरों के कम होते जाने पर चिंता जतायी। निर्दोष जंगली जानवरों की चिंता करने वाली मनेका गान्धी को नरसंहार के लिये बदनाम गुजरात के मुख्य मंत्री से मिलने में कोई असहजता महसूस नहीं हुयी, क्योंकि वे केवल पशुओं के जीवन की ही चिंता करती हैं।
जब तक कोई पार्टी सदस्यों से प्राप्त लेवी से चलने की जगह बड़े बड़े चन्दों से चलेगी तब तक उसके सदस्यों से ईमानदारी की उम्मीद करना बेकार है क्योंकि उनका समर्थन हमेशा चन्दा दायकों को ही मिलेगा। कभी पूरे न होने वाले अनेक आदर्शात्मक सुधारों का ढिंढोरा पीटने वाले नये भाजपा अध्यक्ष ने आखिर क्यों इस बारे में कोई विचार व्यक्त नहीं किये।
वीरेन्द्र जैन
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कुछ नहीं जी राहुलबाबा की नकल कर रहे है. अब इसे आप पाखण्ड समझे तो पाखण्ड सही.
जवाब देंहटाएंजब तक भारत में चीनी मानसिकता, पाकिस्तानी मानसिकता, और अंग्रेजी मानसिकता वाले लोग हैं तब तक ''भारतीयता'' के मुखौटे की आवश्यकता है। यानी जिस थाली में खा रहे हैं उसे में छेद करने वालों के संगत छेद पर टांका लगाने वाले भी चाहिये ही।
जवाब देंहटाएं"जब तक कोई पार्टी सदस्यों से प्राप्त लेवी से चलने की जगह बड़े बड़े चन्दों से चलेगी तब तक उसके सदस्यों से ईमानदारी की उम्मीद करना बेकार है क्योंकि उनका समर्थन हमेशा चन्दा दायकों को ही मिलेगा। कभी पूरे न होने वाले अनेक आदर्शात्मक सुधारों का ढिंढोरा पीटने वाले नये भाजपा अध्यक्ष ने आखिर क्यों इस बारे में कोई विचार व्यक्त नहीं किये।"
जवाब देंहटाएंThis analysis encapsulates the crisis of Indian Political Parties.
Thanx for an honest comment!
Sheeba Aslam fehmi
हिटलरी चेहरे पर भारतीयता का मुखौटा एक भद्दा प्रहसन लगता है और कुछ नहीं
जवाब देंहटाएंइस नौटंकी की ख़ूब रिपोर्टिंग की आपने!