शर्म आती है ऐसे धर्म समाज पर
वीरेन्द्र जैन
खबर भोपाल के समाचार पत्र दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुयी है जिसके अनुसार यहाँ के प्रमुख जैन मन्दिर कमेटी ट्रस्ट चौक के कार्यालय का प्रभार, ट्रस्ट के नवनियुक्त अध्यक्ष को सौंपे जाने के लिये तहसीलदार व पुलिस को आना पड़ा और उनकी उपस्थिति में भी दान पेटियों को सील करते समय झूमा झटकी और मारपीट की नौबत आयी व पुलिस को डंडे चला कर लोगों को तितर बितर करना पड़ा। जिस जैन धर्म की पहचान अहिंसा और अपरिग्रह [दौलत न जोड़ने] से होती है उसके समाज के प्रमुख लोगों का सार्वजनिक धन के प्रति ऐसी आसक्ति एक गुट दूसरे पर चोरी का सन्देह करे और उसके लिये समाज से बाहर पुलिस और प्रशासन की मदद लेना पड़े तब जैन धर्म के तीसरे प्रमुख सिद्धांत अचौर्य [चोरी मत करो] का शरमिन्दा होना ज़रूरी हो जाता है। मेरे एक मित्र का कहना बिल्कुल सही है कि सोने चाँदी की मूर्तियों और छत्रों के साथ बड़ी तिज़ोरियों और बैंक बैलेंस रखने वाले मन्दिर जैन मन्दिर नहीं हो सकते तथा पैसा वहीं एकत्रित करने की ज़रूरत होती है जहाँ ईश्वर पर विश्वास नहीं होता। ऐसी खबरें सुन कर मैं सोचता हूं कि मैं कभी मन्दिर न जाकर और धार्मिक संस्थाओं को दान न देकर ठीक काम करता हूँ।
यह केवल एक धर्म का मामला नहीं है अपितु हर धर्म में चलते नाम की ओट में फर्ज़ी बाड़ा चल रहा है। इसी दिन के अखबार में खबर है कि हरिद्वार में चल रहे कुम्भ मेले में ज्योतिष पीठ बदरिकाश्रम और द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द के शिष्यों ने फर्ज़ी शंकराचार्यों के खिलाफ कुम्भ मेला प्रशासन की ओर से ठोस कार्यावाही न किये जाने के विरोध में कुम्भ मेला और शंकराचार्य नगर का बहिष्कार कर दिया है। जहाँ नकली होता है वहाँ असली की पूँछ घट जाती है। महत्व के नाम पर कुम्भ में होने वाली हिंसा का इतिहास बहुत पुराना है और एक बार तो पहले स्नान के सवाल पर साधुओं में हुये संघर्ष में अठारह हज़ार लोग मारे गये बताये जाते हैं। यह उन लोगों के लिये एक सवाल है जो मुग्ध भाव से यह कहते नहीं अघाते कि धर्म आत्मिक शांति देता है। उनसे मेरा विनम्र निवेदन है कि पहले धर्म का चोला ओढे इन नकली सियारों की पहचान करके उनको बाहर निकालो तथा असली के आचरणों की परख करो तब धर्म के बारे में बात करो।
पिछले दिनों जवाहरलाल नेहरू युनीवर्सिटी की शोध छात्रा और प्रसिद्ध पत्रिका हैड लाइंस प्लस की पूर्व सम्पादक शीबा असलम फहमी इस्लाम में औरत की कुदशा के पीछे अनपढ मुल्लाओं के कच्चे चिट्ठे खोल कर बताती रहीं हैं कि इस्लाम के प्रति फैल रही विश्वव्यापी नफरत के पीछे मौलानाओं और तालिबानों की स्वार्थ केन्द्रित गलत समझ ही ज़िम्मेवार है। उनके लेख सुप्रसिद्ध कथा पत्रिका हंस और वेब पत्रिका रचनाकार में धारावाहिक रूप में आते जा रहे हैं जो पठनीय और विचारणीय ही नहीं अपितु आँखें खोल देने वाले हैं। अपने आप को सच्चा मुसलमान कहने से पहले कितने लोग हैं जो ढाई प्रतिशत ज़कात देने का काम ईमानदारी से करने का दम भर सकते हैं।
सुप्रसिद्ध पत्रकार स्तम्भ लेखक सुभाष गताडे, हमसमवेत फीचर द्वारा ज़ारी एक लेख में बताते हैं कि सूचना के अधिकार के अंतर्गत दी गयी जानकारी के अनुसार केरल पुलिस द्वारा राज्य के 63 पादरियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं जिनमें हत्या, हत्या की कोशिश, बलात्कार, हमला, अपहरण, चोरी, धोखाधड़ी, के आरोप हैं।
अनेक साधुओं के आश्रमों पर जो काला धन धोने से लेकर अनेक तरह की यौनिक अपराध होते हैं उनका भंडाफोड़ तो टीवी के स्टिंग आपरेशनों में होता ही रहता है।
राजनीति द्वारा धार्मिक आस्थाओं के दुरुपयोग पर तो नित प्रति लिखा ही जाता रहा है। इसलिये जिन्हें सचमुच धर्म से प्यार है, उन्हें चाहिये कि धर्म के आचरणों को जानें, उसके अनुसार आचरण करें और अपने घर के एक कोने को ही धर्म स्थल मान कर धार्मिक कृत्य करें। इन धर्म की दुकानों को बन्द हो जाने दें जो आपको धर्म से दूर कर रहे हैं।
राहत इन्दौरी के एक शेर का मिसरा है-
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
वीरेन्द्र जैन
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