शुक्रवार, जून 10, 2011

श्रद्धांजलि एम. एफ. हुसैन


श्रद्धांजलि एम.एफ हुसैन
दो गज जमीन भी न मिली कूए यार में
वीरेन्द्र जैन
पिछले दिनों जब हम लोग 1857 की एक सौ पचासवीं जयंती मना रहे थे तब मित्रों ने बड़े जोर शोर से बहादुर शाह ज़फर की कब्र को म्यांमार से भारत लाने की भावुक माँग की थी। बहादुर शाह जफर को तो विदेशी सरकार ने म्यांमार में दफन होने के लिए मजबूर किया था किंतु किंतु आज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के चित्रकार एम.एफ हुसैन को कुछ विद्वेषी साम्प्रदायिक तत्वों द्वारा एक सोची समझी रणनीति से विदेश में रहने, मरने और दफन होने के लिए विवश कर दिया। विचारणीय यह है कि देश में सत्तारूढ दल, समाजवादी और साम्यवादी विचार के लोग हुसैन पर कला के क्षेत्र से बाहर के लोगों द्वारा लगाये गये आरोपों से सहमत नहीं थे फिर भी उन्हें दूसरे देश की नागरिकता लेनी पड़ी। खेद है कि आज लोहियावादी उन्हीं साम्प्रदायिक तत्वों के साथ इमरजैंसी में जेल यात्रा की पैंशन ले रहे हैं, जो इन्दिरा गान्धी से माफी माँग कर जेल से बाहर आये थे।
कला के क्षेत्र से बाहर के इन तत्वों ने विवादत्मक बनायी गयी कलाकृतियों को छोड़ कर न तो हुसैन की अन्य कलाकृतियां देखी हैं और न ही दूसरे गैर मुस्लिम चित्रकारों की वैसी ही कलाकृतियां देखी हैं जैसी कृतियों पर विवाद खड़ा किया गया था, क्योंकि वे बहकाये हुए लोग सामन्यतयः माडर्न आर्ट के दर्शक और उन्हें समझने वाले लोग नहीं हैं। यदि हुसैन के पूरे जीवन दर्शन को देखा जाये तो उन पर साम्प्रदायिक दृष्टि का आरोप नहीं लगाया जा सकता। वैसे भी इस देश में माडर्न आर्ट को देखने और समझने वाले लोग दसमलव जीरो जीरो एक प्रतिशत भी नहीं होंगे इसलिए भी इस तरह की कलाओं पर भावना भड़काने का आरोप हास्यास्पद ठहरता है। उल्लेखनीय यह भी है कि इन्हीं तत्वों द्वारा हुसैन ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के नाटककार, हबीब तनवीर, फिल्म कलाकार दिलीप कुमार, आमिर खान, शबाना आजमी, आदि को भी इसी तरह के विवादों में फँसाने की कोशिशें की जाती रही हैं, क्योंकि उनकी दृष्टि कलात्मक न होकर साम्प्रदायिक होती है।
कलाओं पर विवाद हो सकते हैं, और स्वस्थ आलोचना पर सहमतियां असहमतियां होना चाहिए किंतु किसी गैरकलात्मक संस्था या व्यक्ति द्वारा कलाकार की कृति पर वाद कायम करने से पहले कला सुधी कला समीक्षकों की राय भी ली जानी चाहिए, अन्यथा देश में कला के नाम पर जो कुछ बचेगा वह या तो ऐतिहासिक होगा या शर्मनाक। हुसैन को श्रद्धांजलि देने वाले राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को प्रायश्चित भी करना चाहिए।

वीरेन्द्र जैन
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