गुरुवार, जून 23, 2011

मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना


मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना

वीरेन्द्र जैन

अब मुंडे की बारी है। मुझे लगता है कि भाजपा एक बेरी का पेड़ है, जिसके पास थोड़ी थोड़ी देर बाद कोई न कोई बच्चा आता है, पेड़ को हिलाता है व अपने हिस्से के बेर बटोर कर चल देता है। वसुन्धरा राजे ने पार्टी के पेड़ को हिलाया था और अपना विपक्षी नेता का पद सुरक्षित बनाये रखा, अभी अभी उमा दीदी हिला कर गयी थीं और यूपी की दीवान बना दी गयीं थीं, अब मुंडे की बारी थी।

किसी फिल्म में एक डायलोग था- रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप लगते हैं। अगर इसी अन्दाज में देखा जाये तो गोपी नाथ मुंडे को भाजपा में जीजाजी का रिश्ता हासिल होना चाहिए अर्थात वे पिता तुल्य लोगों के दामाद की तरह हैं, क्योंकि वे दिवंगत प्रमोद महाजन के बहनोई हैं। अगर अटलजी की तरह आप की स्मृति लोप नहीं हुयी है तो आपको बता दें कि ये वही प्रमोद महाजन हैं जो उसी विभाग के मंत्री थे जिस विभाग में सेवाएं देते देते ए राजा तिहाड़ में हैं और कनमौझी मोमबत्तियां बनाना सीख रही हैं। ये वही प्रमोद महाजन हैं जिन्हें नागपुर अधिवेशन के दौरान अटलजी ने अपनी रामलीला पार्टी का लक्षमण बताया था। जिनके निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि देते समय उनके चित्र के नीचे लिखा गया था कि- तेरा गौरव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें।

हाँ वैसे तो ये पंक्तियां देश के लिए शहीद हुये लोगों के सम्मान में लिखी जाती हैं, पर प्रमोद महाजन जी को तो उनके भाई ने ही गोली मार दी थी व रामकथा में सुग्रीव बाली और रावण विभीषण के सम्बन्धों की याद दिला दी थी। बाद में कातिल का कहना था कि मृतक भाई दो हजार करोड़ के मालिक थे और वह भूखों मर रहा था। यूं तो प्रमोद महाजन ने रिलायंस में उसकी नौकरी लगवा दी थी, पर उससे क्या होता है क्योंकि उसे कुल मिलाकर सिर्फ 75000/- रुपये महीना वेतन मिल रहा था। इतनी सी मामूली राशि से कहीं परिवार को पाला जा सकता है, वह जरूर भूखों मर रहा होगा। विभुक्षं किं न करोति पापं।

उसके बाद उसे जरूर अपराध बोध हुआ होगा, इसलिए वह जेल से बाहर नहीं आया जब तक कि उसकी आत्मा देह से बाहर आने के लिए दरवाजे तक नहीं आ गयी। जेल जाने से पहले वह स्वस्थ था और शायद लाइसेंसी पिस्तौल रखता था। अगर वह लाइसेंसी थी तो उसे लाइसेंस अवश्य ही प्रमोद महाजन की सिफारिश से मिला होगा। कई बार सिफारिशें कितनी खतरनाक होती हैं। वह अदालत के सामने अपनी गलती मानना चाहता होगा, और सम्भव है कि मानी भी हो पर मृतक के वकील ने उसके बयान सार्वजनिक न किये जाने का अनुरोध किया था जिसे माननीय अदालत ने स्वीकार कर लिया जिससे उसके बयान हमेशा के लिए गुमनाम होकर रह गये तथा उसका पश्चाताप सामने नहीं आ पाया।

वंशवाद के नाम पर दिन में तीन बार नियमपूर्वक गालियां निकालने वाली पार्टी ने प्रमोदजी के पुत्र को तुरंत उनकी विरासत देने की तैयारी कर ली तथा उसे पार्टी के मुख्यालय में बुला कर राजकुंवरों की तरह स्वागत किया। पर दुखद कि उसी दिन दिवंगत के सपूत ने पिता के गम से दुखी माहौल में कुछ जवानी की भूल कर दी जिससे प्रमोदजी के सचिव रहे व्यक्ति की मृत्यु हो गयी और सपूत कई दिन तक होश में आकर भी होश में नहीं आये, जब तक कि वकीलों द्वारा तैयार बयान देने लायक नहीं हो गये। अपनी जवानी की भूल में साथ देने के लिए जिन लड़कों को बुलाया गया था उनका क्या हुआ उसके प्रति मीडिया ने ध्यान नहीं दिया इसलिए इतिहास मौन हो गया है और भविष्य में भी रहेगा। बहरहाल इस पूरे एपीसोड को जिन मित्तल जी ने हैंडिल किया था उन्हें भारतीय संस्कृति पर गर्व करने वाली पार्टी ने राज्यसभा में अपने नेता के मुखर विरोध के बाद भी उत्तरपूर्व के राज्यों का प्रभार दिया हुआ है। अभी पिछले दिनों यही मित्तल दिल्ली में धरने के दौरान राज्यसभा में पार्टी के नेता को सोया समझ कर उनके पास सो गये थे किंतु जब नेता की आँख खुली तो उन्होंने अपने पड़ोस में सोये व्यक्ति की शकल देख कर अपने सोने की जगह बदल ली।

अपने दिवंगत नेता की संतानों के लिए दुबली हो रही पार्टी ने सपूत से निराश होने के बाद उसकी लाड़ली लक्ष्मी को विरासत सौंपने की कोशिश की और गोवा विधान सभा के चुनाव में टिकिट देने की कोशिश की, किंतु विधानसभा में पहुँचना उसकी किस्मत में नहीं था सो उसे युवा मोर्चे का पदाधिकारी बना दिया गया। उसके बाद उसे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान आखिरकार घाटकोपर से टिकिट देकर ही पार्टी ने चैन की साँस ली। पर हाय रे दुर्भाग्य कि इन मतदाताओं ने उसे हरा दिया और पार्टी अपने अहसानों का प्रतिफल नहीं दे सकी। इसी बीच प्रचार के लिए जोड़े गये शाटगन अर्थात शत्रुघ्न सिन्हा ने सवाल उठा दिया कि अगर पूनम महाजन को टिकिट दिया जा सकता है तो पूनम सिन्हा, अर्थात उनकी पत्नी को टिकिट क्यों नहीं दिया जा सकता! सितारे कभी कभी विचित्र तर्कों से सितारों की चाल खराब कर देते हैं।

मुंडे इसी गौरवशाली परिवार से जुड़े हैं और पार्टी उनसे बिछुड़ कर चैन कैसे पा सकती है। रिश्तों को दूर तक निभाने वाली यह पार्टी, कांग्रेस की तरह नारायन दत्त तिवारी, सुरेश कलमाड़ी व सहयोगी दल के राजा की तरह पकड़ में आने पर पीछा नहीं छुड़ा लेती है। अगर बंगारू कैमरे के सामने गिड्डियां दराज में डालते और डालरों में मांगते पकड़े जाते हैं तो कोई बात नहीं उनकी पत्नी को लोकसभा का टिकिट देकर उसकी भरपाई की जा सकती है, भले ही वे पहले पार्टी से कभी जुड़ी न रही हों। अगर जूदेव खुदा को ग्रहण करते हुए कैमरे में कैद हो जाते हैं तो भी भ्रष्टाचार विरोध की बारात में बेंड बजाने वाली पार्टी की ओर से राज्यसभा में भेज दिये जाते हैं। जय हो!

बुलबुल को गुल पसन्द है गुल को है बू पसन्द

मेरी पसन्द ये है कि मुझको है तू पसन्द

मुंडे ने पहले ही महाराष्ट्र राज्य के चुने हुए पार्टी अध्यक्ष को बदलवाकर पार्टी को झुका लिया था, बाद में लोकसभा के उपनेता के बदले ही गडकरी को पार्टी अध्यक्ष स्वीकारा था। बहरहाल मुंडे की नाराजी दूर हो गयी है। अब यह मत पूछिए कि कैसे दूर हुयी है, आपको आम खाने हैं कि पेड़ गिनने हैं?

वीरेन्द्र जैन

2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड

अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [.प्र.] 462023

मो. 9425674629

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