शुक्रवार, फ़रवरी 17, 2012

उमा भारती और उत्तर प्रदेश के चुनाव


उमा भारती और उत्तर प्रदेश के चुनाव
वीरेन्द्र जैन
      उमा भारती की भाजपा में वापिसी और उनका मध्य प्रदेश से निष्कासन ही नहीं अपितु उसके बाद का घटनाक्रम भी नाटकीय रहा है। भाजपा जैसी रामलीला पार्टी में यह बहुत अस्वाभाविक भी नहीं है। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में उन्हें न केवल चुनाव का स्टार प्रचारक ही बनाया गया अपितु एक सीट से उम्मीदवार भी बनाया गया है। जब प्रदेश भाजपा का कोई दूसरा कोई बड़ा नेता यह दावा भी नहीं कर रहा है कि अगर भाजपा की सरकार बनी तो उसे ही मुख्य मंत्री बनाया जायेगा किंतु तब उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ने वाले प्रमुख नेताओं में मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और एनडीए शासन काल में केन्द्रीय सरकार में मंत्री रही उमा भारती का दिवास्वप्न अस्वाभाविक नहीं है बशर्ते कि वे स्वयं चुनाव जीत जायें और उनकी पार्टी स्वयं में इतनी सीटें जीत ले ताकि किसी दूसरे दल से समझौता करके सरकार बनाने में सफल हो पाये। किंतु यह अन्धविश्वास किसी मुंगेरीलाल को भी नहीं है कि भाजपा पहले तीन पायदान तक पहुँच सकेगी इसलिए उमाभारती  के नेतृत्व के सवाल पर सभी मन्द मन्द मुस्कराते हुए मौन हैं। न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी। चुनाव परिणामों के बाद न तो कांग्रेस भाजपा को गठबन्धन में सम्मलित कर सकती है और न ही समाजवादी पार्टी। बहुजन समाज पार्टी ने जितनी बार भी भाजपा के साथ सरकार बनायी तब सदैव ही भाजपा को निचले पायदान पर रखा है और गठबन्धन के समय अधिक सदस्य होते हुए भी पहले अपने नेतृत्व वाली सरकार बनायी। तय है पुनः ऐसा कोई अवसर आने पर मायावती भाजपा के नेतृत्व में सरकार चलाने की जगह विपक्ष में बैठना अधिक पसन्द करेंगीं। इसलिए यह तो तय है कि न तो भाजपा की सरकार बन रही है और न ही उमा भारती मुख्यमंत्री। कहा जा रहा है कि उन्हें इसलिए चरखारी से टिकिट दिया गया है ताकि वे बीच चुनाव में कोई बहाना ले कर भाग न निकलें। स्मरणीय है कि बाबू सिंह कुशवाहा के साथ भाजपा द्वारासौदा करने का तीव्र विरोध उन्होंने इसीलिए किया था बरना सुखराम जयललिता आदि से लेकर चौटाला आदि द्वारा समर्थित एनडीए सरकार में मंत्री रहने में उन्हें कभी कोई आपत्ति नहीं रही।  
      इस विषय में रोचक यह है कि मध्य प्रदेश के वे नेता उनकी जीत की कामना और प्रयास कर रहे है जो उनके घनघोर विरोधी रहे हैं। वे चाहते हैं कि उमा भारती इधर से टलें ताकि वे चैन की साँस ले सकें। स्मरणीय है कि बड़ामल्हरा उपचुनाव के दौरान उमा भारती ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर उनकी हत्या का षड़यंत्र रचने का आरोप लगाया था। यही कारण है कि मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा के पट शिष्य शिवराज उमाभारती से वैसी ही दुश्मनी मानते हैं जैसी कि पटवाजी मानते हैं। पिछले दिनों ही पटवाजी ने एक बयान में उमाभारती के बारे में टिप्पणी करते हुए कहा था कि वे अब मध्य प्रदेश की वोटर ही नहीं रहीं। पहले भी उन्होंने उमा भारती के बारे में टिप्पणी करते हुए त्रिया चरित्रस्य पुरुषस्य भाग्यं देवो न जानाति कुतो मनुष्यः कह कर बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था। उल्लेखनीय है कि उमा भारती का जिक्र आने पर उनके स्वर में कटुता आ जाती है।
      उत्तर प्रदेश भाजपा में दूसरे भगवा भेषधारी नेता योगी आदित्यनाथ हैं जो भाजपा में रहते हुए भी भाजपा में नहीं हैं अपितु भाजपा उनमें है। वे भाजपा के अनुशासन में नहीं रहते व संघ परिवार के समानांतर अलग से वैसे ही अपने संगठन बनाये हुए हैं। वे भाजपा नेताओं का सम्मान नहीं करते अपितु चुनाव जीतने के लिए भाजपा नेता उनकी चिरौरी करते हैं। विधानसभा के पिछले चुनावों के दौरान भी वे भाजपा को छोड़ कर चले आये थे तब भाजपा के बड़े बड़े नेता उनको मनाने उनके दर पर गये थे और क्षमा मांगते हुए उनके सभी लोगों को उन जगहों से टिकिट दे दिया था जिनके लिए योगी ने आदेश दिया था। अभी भी गत दिनों योगी ने लखनऊ में एक प्रैस कांफ्रेंस में कहा कि किसी को भी बहुमत नहीं मिलेगा। चुनाव के दौरान दिया गया यह बयान यथार्थवादी होते हुए भी न केवल अप्रत्याशित था अपितु इस बात का भी प्रमाण था कि भाजपा नेतृत्व को भी चुनाव जीतने का कोई भरोसा नहीं है। दूसरी ओर नईदिल्ली में भाषण करते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि भाजपा की चुनावी नैया उत्तर प्रदेश में डांवाडोल हो रही है। भाजपा उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने की स्थिति में नहीं आनेवाली है इसलिए स्वयं सेवकों को चाहिए कि वे आँख मूंद कर भाजपा का समर्थन नहीं करें। भाजपा का समर्थन केवल वहीं किया जाये जहाँ वह जीतने की स्थिति में है। उन्होंने अन्य स्थानों पर बहुजन समाज पार्टी का समर्थन करने का आवाहन किया।
      यदि उमाभारती अपनी सीट जीत लेती हैं तो वे जिन्दगी भर के लिए मध्यप्रदेश से बाहर हो जायेंगीं और यदि हार जाती हैं तो उनके नेतृत्व पर सदा के लिए सवालिया निशान लग जाता है। यह भी तय हो जायेगा कि जिन लोधी वोटों के लालच में उमाभारती को उम्मीदवार बनाया था वैसा कुछ नहीं बचा तथा लोधियों का नेतृत्व कल्याण सिंह आदि नेता ही करते हैं। गतदिनों  अपनी भारतीय जनशक्ति की ओर से जब मध्य प्रदेश की सभी सीटों पर उन्होंने अपने उम्मीदवार खड़े किये थे, तब पूरे प्रदेश में कुल मिला कर उन्हें 12 लाख वोट मिल सके थे। उत्तर प्रदेश में पराजय के बाद वे कहीं की नहीं रहेंगीं।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टरर्लिंग, रायसेन रोड
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