शुक्रवार, जून 22, 2012

भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व और उसके विरोधाभास


भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व और उसके विरोधाभास  
वीरेन्द्र जैन
      देश में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है और यही कारण है कि जब भी कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ उठ खड़ा होता हुआ दिखता है तो उसके पीछे बहुत सारे लोग यह सोचे बिना ही आ जाते हैं कि जब तक यह समर्थन किसी सार्थक परिवर्तनकारी राजनीति और राष्ट्रव्यापी संगठन के साथ नहीं जुड़ता तब तक किसी परिणिति तक नहीं पहुँच पाता। जय प्रकाश नारायण का आन्दोलन हो या वीपी सिंह का अभियान हो वे व्यापक राजनीतिक दृष्टि और संगठन के बिना चलाये गये थे इसलिए बिना कोई परिवर्तन किये बड़ी घटनाएं बन कर रह गये। आज अन्ना का आन्दोलन हो या रामदेव का वे भी इसी दोष के शिकार हैं इसलिए उनकी परिणिति भी तय है। स्मरणीय है कि विदेशों में जमा धन को वापिस लाने को भाजपा ने अपना चुनावी मुद्दा बनाया था किंतु उसे आन्दोलन का रूप देने की कोई कोशिश नहीं की। जब रामदेव और अन्ना हजारे ने इस समस्या पर आन्दोलन प्रारम्भ किये तो कई राजनीतिक दल तो इनके पीछे इसलिए आ गये ताकि इनके अभियान से उठी लहर में वे अपनी नैय्या पार लगा सकें।
       भाजपा से जुड़े संगठनों ने तो साफ साफ कहा कि अन्ना के अनशन के दौरान उन्होंने न केवल संसाधनों में मदद की थी अपितु भीड़ एकत्रित करने में योगदान भी किया था। उनका यह बयान अन्ना टीम के लिए नुकसान दायक साबित हुआ था। अपनी सोच और अतीत में किये गये कारनामों के कारण भाजपा और उससे जुड़े जनसंगठन इस तरह से बदनाम हैं कि उनके सहयोग की भनक भर आन्दोलन को कमजोर करने के लिए काफी होती है इसलिए वे विपक्ष में रहते हुए भी इस विषय पर आन्दोलन नहीं छेड़ते पर उसका सम्भावित लाभ लेने के लिए परदे के पीछे से प्रयास करते हैं। स्मरणीय है कि जब अन्ना हजारे के आन्दोलन के प्रति लोगों में तीव्र आकर्षण पैदा हुआ था तब संघ ने भ्रष्टाचार के खिलाफ पहले आन्दोलन न छेड़ने के लिए भाजपा नेताओं को फटकार लगायी थी। रामदेव तो परोक्ष रूप से भाजपा से जुड़े ही रहे हैं और उनके ट्रष्ट भाजपा को विधिवत चन्दा देते आये हैं। यह अलग बात है कि उसे सार्वजनिक रूप से स्वीकारने में तब तक कतराते रहे जब तक मीडिया में प्रमाण सहित सच सामने नहीं आ गया।
      एक बार असफल हो जाने के बाद अन्ना हजारे और रामदेव ने सन्युक्त होकर पुनः आन्दोलन छेड़ने की योजनाएं तैयार की हैं और भाजपा जैसे दल उसके समर्थन को लपक लेने की तैयारी करने लगे हैं। असल में यह भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रोशित जनता के साथ एक और धोखा है कि उसकी भावनाओं को उस दल को बेच दिया जाये जिसे जनता पसन्द नहीं करती। इस आन्दोलन में कहीं भी चुनाव प्रणाली, कार्यपालिका व न्यायपालिका में वांछित परिवर्तन का नक्शा नहीं है जिनके चलते वर्तमान में जो भी कानून हैं वे निष्प्रभावी हैं, और उनके होते हुए भी भ्रष्टाचार ने इतना बड़ा स्वरूप ग्रहण कर लिया है।
      अभी हाल ही में घटित घटनाओं पर इन संगठनों ने जो टिप्पणियां की हैं उनसे इनकी कूटनीति का पता चलता है। अल्पसंख्यकों के मन में भाजपा के प्रति जो सन्देह हैं वही सन्देह भाजपा के जनसंगठनों से सहायता लेने वाले इन आन्दोलनकारियों के प्रति न रहें इसलिए इन्होंने कुछ वैसे ही टोटके किये हैं जैसे कि राजनीतिक दल करते रहते हैं। पिछले वर्ष अन्ना हजारे ने जब अनशन तोड़ा था तो एक मुस्लिम और एक दलित कन्या के हाथों से जल ग्रहण करने का ड्रामा किया था। विदेशों में जमा पैसा वापिस लाने का आन्दोलन चलाने वाले आयुर्वेद दवाओं के उद्योगपति रामदेव ने अपनी आन्ध्रा यात्रा के दौरान पृथक तेलंगाना राज्य की माँग का समर्थन किया था जिसे भाजपा अपना समर्थन दे रही है। पिछले महीने रामदेव ने आल इंडिया यूनाइटिड मुस्लिम मोर्चे के बैनर तले नई दिल्ली के इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में आयोजित सम्मेलन में कहा कि अगर हिन्दू दलितों को आरक्षण मिलता है तो मुस्लिम दलितों को क्यों नहीं मिलना चाहिए? संविधान के अनुच्छेद 341 के अंतर्गत धार्मिक आधार पर पाबन्दी पूरी तरह गलत है, इस अनुच्छेद में बदलाव आना चाहिए। मैं इसके खिलाफ लड़ाई का ऐलान करता हूं। इस अवसर पर उन्होंने ‘बिसिमिल्लाह’ से शुरुआत करते हुए कुरान की आयत भी पढी। उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमान देशभक्त हैं और देश पर जान कुर्बान करने के लिए तैयार रहते हैं। स्मरणीय है कि मुस्लिम विरोधी भाजपा मुसलमानों और ईसाइयों को आरक्षण देने के पक्ष में नहीं है पर उसने रामदेव के इस कूटनीतिक बयान पर कोई टिप्पणी नहीं की, जबकि कांग्रेस द्वारा यही बयान देने पर आसमान सिर पर उठा लेती। स्मरणीय है पिछले वर्ष रामदेव अपना राष्ट्रीय स्वाभिमान दल बनाकर उस बैनर से पूरे देश में चुनाव लड़ने की समय पूर्व घोषणा कर चुके थे, तथा भाजपा से झिड़की खाने के बाद उसे वापिस ले लिया था।
      गत दिनों यूपीए द्वारा प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाये जाने के बाद टीम अन्ना ने उन पर लगाये गये पुराने आरोपों को उसी तरह से उकेरा जैसे कि श्रीमती प्रतिभादेवी सिंह पाटिल को उम्मीदवार बनाये जाने पर भाजपा ने उनके परिवार वालों के खिलाफ लगाये थे। जो अपने आन्दोलन को गैर राजनीतिक प्रचारित करते हैं उनके द्वारा ऐसे समय कथित आरोप लगाये जाने से उनके राजनीतिक लक्ष्यों की झलक मिलती है। उल्लेखनीय है कि हजारों करोड़ के भ्रष्टाचार के आरोप में जिन जगन मोहन रेड्डी को सीबीआई कैद में रख कर पूछ्ताछ कर रही है, उनकी जेबी पार्टी द्वारा उपचुनावों में सारी सीटें जीत लिए जाने के बाद भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलनरत टीम अन्ना ने न तो उन पर टिप्पणी करने की जरूरत समझी और न ही चुनाव प्रणाली के दोषों पर ही कोई टिप्पणी की। जब तक जगन मोहन रेड्डी कांग्रेस से अलग नहीं हुए थे तब तक भाजपा की ओर से उन पर और उनके पिता वाय एस रेड्डी पर अनगिनित आरोप ही नहीं लगाये जाते थे अपितु वे उनके ईसाई होने के कारण सोनिया गान्धी के संरक्षण मिले होने का आरोप भी लगाते थे। पर अब भाजपा नेता मनेका गान्धी जगन मोहन की माँ से सहानिभूति व्यक्त करती हैं और भाजपा उनके साथ गठबन्धन के प्रति वैसे ही लालायित है, जैसा कभी सुखराम और जयललिता के साथ कर चुकी है।  
      अन्ना हजारे और बाबा रामदेव दोनों को ही राजनीतिक दल बनाने, या गठबन्धन करने का पूरा अधिकार है पर वे जिस नैतिकता की दुहाई देते हुए अपना आन्दोलन चला रहे हैं उसके  आधार पर जनता को मूर्ख बनाने का अधिकार नहीं है। रामदेव कई लाख करोड़ डालरों के स्विस बैंकों में जमा होने की बात कहते रहे हैं किंतु स्विट्जरलेंड के केन्द्रीय बैंक स्विस नैशनल बैंक ने अपने सालाना विवरण में जानकारी दी है कि सन 2011 के अंत तक भारतीयों के 218 करोड़ स्विस फ्रैंक अर्थात कुल 12740 करोड़ रुपये जमा थे। पर राजनीतिक दलों की तरह आन्दोलन चलाने वाली यह जोड़ी बिना किसी जिम्मेवारी के मनमाने  आरोप लगा रहे हैं क्योंकि उन्हें अपने आँकड़ों को कहीं सिद्ध नहीं करना है अपितु सत्तारूढ दल के खिलाफ माहौल बनाना है। उल्लेखनीय है कि इस प्रक्रिया में वे आपस में भी एक दूसरे को ठगने लगते हैं। रामदेव टीम अन्ना के नाभिक अरविन्द केजरीवाल को मंच पर ही डाँट देते है और उनकी अभिव्यक्ति को रोक देते हैं तो खुद जाकर शरद पवार समेत सभी नेताओं से मिलते हैं। टीम अन्ना के प्रमुख लोग खुद भी अन्ना के अनशन इतिहास के कारण उन्हें मुखौटा बनाये हुए हैं और विसंगति आने पर कहते हैं कि डाकूमेंट अंग्रेजी में होने के कारण उनके नेता अन्ना को समझ में नहीं आया। ये लोग एक दूसरे का समर्थन हड़प लेना चाहते हैं, और भाजपा जैसे दल इनके द्वारा पैदा किये गये जनउभार से राजनीतिक लाभ उठाने की फिराक में उनके मददगार हैं। पिछले साल भर में इस क्षेत्र में जैसी जैसी घटनाएं हुयी हैं उसमें कहा नहीं जा सकता कि कब किसका सच सामने आ जाये और आन्दोलन की हवा निकल जाये या कितने अग्निवेष और निकलें।  कुछ लोग इसे आन्दोलन न कह कर तमाशा कहते हैं और लगता है कि वे गलत भी नहीं हैं।  
 वीरेन्द्र जैन
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