योगेन्द्र यादव व
प्रशांत भूषण की आत्मघाती राजनीति
वीरेन्द्र जैन
न्यूटन
जैसे महान वैज्ञनिक के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने बिल्ली पाल रखी थी। एक
बार जब उन्होंने देखा कि बाहर का दरवाजा बन्द होने के कारण बिल्ली और उसके छोटे
बच्चे को बाहर खड़ा रहना पड़ा तो उन्होंने कारपेंटर को बुला कर कहा कि दरवाजे में एक
बड़ा और एक छोटा दो छेद बना दे ताकि बिल्ली और उसका बच्चा अन्दर बाहर हो सके। जब
बढई ने बताया कि इसके लिए दो छेद बनाने की जरूरत नहीं है क्योंकि बड़े छेद से ही
बिल्ली और उसका बच्चा दोनों ही निकल सकते हैं तब उनकी समझ में आया कि दुनिया को
अपने मौलिक सिद्धांत देने वाला वैज्ञानिक भी समान्य सी चूकें कर जाता है।
योगेन्द्र
यादव जाने माने राजनीतिक विश्लेषक, और प्रशांत भूषण प्रतिष्ठित वकील हैं और देश की
बड़ी बड़ी पार्टियों को जन मानस के राजनीतिक रुझान का परिचय देते रहे हैं किंतु आम
आदमी पार्टी के ताज़ा घटनाक्रम में वे एक खलनायक की तरह उभरे हैं। वे जानते रहे हैं
कि काँग्रेस शासन की बदनामी, एंटी इनकम्बेंसी भाजपा की लफ्फाजी और जीत के लिए अनैतिक
हथकण्डे अपनाने तथा इन प्रमुख दलों के खिलाफ घनीभूत निराशा के विपरीत आदमी नामक पार्टी
नामक संगठन एक उम्मीद का नाम है। इस संगठन का नेतृत्व एक ऐसे सुशिक्षित, विनम्र, तकनीकी
व्यक्ति के रूप में सामने आया जो देश में आरटीआई जैसे प्रमुख अधिकार को लाने के
लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पुरुस्कृत हुआ, जिसने इनकम टैक्स कमिश्नर जैसे पद का
त्याग भी सामाजिक कामों के लिए कर दिया और भ्रष्टाचार के खिलाफ देशव्यापी आन्दोलन
खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। नेतृत्व की इस छवि को दिल्ली की जनता
द्वारा पसन्द किया गया जिसे भाँप कर देश भर के गैर भाजपा, गैर काँग्रेसी दलों
द्वारा विधानसभा चुनाव में खुला समर्थन दिया गया।
यह
सच है कि आम आदमी पार्टी अपनी नीतियों के प्रति साफ नहीं है और केवल भलमनसाहत के
साथ साफ सुथरा प्रशासन देने के नाम पर एक अस्पष्ट राजनीतिक सोच का जुड़ाव है। इस
पार्टी को चुनाव में सभी रंगों की राजनीतिक सोच की शुभकामनाएं मिली हैं और उन सभी
को उम्मीद रही है कि वे उनकी सोच को बल देंगे। आम आदमी पार्टी के विभिन्न सोच के
सदस्यों को भी ऐसी ही आशा रही होगी तथा दिल्ली में सरकार बनते ही वे उसको फलीभूत
होना देखना चाहते होंगे। पार्टी के विस्तार की रणनीति और कार्यप्रणाली पर भी
विभिन्न विचार हो सकते हैं। पर एक एतिहासिक जीत के बाद जब नेतृत्व को काम करने का
श्रीगणेश करना था उसी समय पार्टी में संगठन और विचारधारा वाले पत्र का सार्वजनिक
होना एक बड़ी भूल है। खेद है कि यह भूल ऐसे लोगों द्वारा की गयी है जो दूसरों को
राजनीतिक ज्ञान बाँटते रहे हैं। जो काम पार्टी के गठन के समय किया जाना था या इसे
सरकार के कार्य मूल्यांकन तक स्थगित रखा जाना चाहिए था उसे उस समय उठाना जब सारा
जन समर्थन उम्मीदों से और विरोधी कौतुहल से देख रहे हों तब इसे पीठ में छुरा
घोंपना ही कहा जायेगा। जब इसे उन लोगों द्वारा उठाया जा रहा है जिन्हें विजय के
बाद पद न मिले हों तब इसे सैद्धांतिक विरोध के रूप में नहीं पहचाना जा सकता। उसके
बाद भी यह सैद्धांतिक मतभेद रहता अगर पत्र को लीक करके दोहरे चरित्र वाली भाजपानुमा
हरकत न की गयी होती।
व्यक्ति
केन्द्रित राजनीति के इस दौर में अरविन्द केजरीवाल आम आदमी पार्टी के चेहरे के रूप
में सामने आ चुके हैं और ताजा ताजा चोट खाये विरोधियों के निशाने पर हैं जिनमें से
कुछ तो अपनी कुटिल राजनीति के लिए ही जाने जाते हैं। ऐसे समय केजरीवाल की छवि को
खराब करने वाली किसी भी गतिविधि का जनसमर्थन विरोधी गतिविधि के रूप में जाना जाना
स्वाभाविक है। पिछले एक साल से चुनी हुयी सरकार से वंचित दिल्ली की जनता को जब
अपने पसन्द की सरकार मिली हो तब प्रथम ग्रासे मक्षिकापात जैसी स्थिति लाने वाले को
आम आदमी पार्टी के सदस्यों का समर्थन न मिलना स्वाभाविक है, इस बात को भूलने की
उम्मीद योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण से नहीं की जा सकती थी। यद्यपि एनडीटीवी के
कार्यक्रम में भावुकता भरे स्वर में उन्होंने किसी विद्वेषी भावना से इन्कार किया
है किंतु विघ्नसंतोषी चटपटी खबर के भूखे मीडिया को सातों दिन चौबीस घंटे के समाचार
चाहिए होते हैं, या पैदा करने पड़ते हैं। उम्मीद की जाना चाहिए कि उक्त लोग बिन्नी
या शाज़िया इल्मी के रूप में नहीं जाने जाना चाहेंगे।
वीरेन्द्र जैन
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bakvas..अरविन्द को कुछ बोलना चाइये था ..आशुतोष और संजय नीची राजनीत कर रहे है ..केजरवाल जितने दिन चुप रहंगे ..1 वरग उनसे उतना ही नाराज होता जायेगा ....इस तरह की जिल्लत और अपमान बर्दास्त करने की ताकत सबमे नही है..चरित्र और चेहरा में संजय और अस्शुतोष दोनों योगेन्द्र और प्रशांत क आस पास भी नही ठरते ..
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