भाजपा शासित
राज्यों में गौबध पर प्रतिबन्ध की विडम्बना
वीरेन्द्र जैन
आचार्य
रजनीश जो बाद में ओशो के नाम से जाने गये, अपनी बात को बहुत लुत्फन्दाज़ ढंग से
कहने में कुशल थे जिससे वह न केवल अलग लगती थी अपितु भेदती हुयी जाती थी। महावीर
पर प्रवचन की श्रंखला के दौरान उन्होंने कहा कि महावीर ने कभी कहीं नहीं कहा कि
मांस न खाओ, पर उन्होंने जिस अहिंसा की बात की वह उससे बहुत ऊपर है। अगर आप अहिंसा
धर्म का पालन करते हैं तो मांस तो क्या आप किसी भी जीव को भावनात्मक आघात भी नहीं
पहुँचाएंगे।
हमारी
संसदीय प्रणाली के अनुसार बहुकोणीय मुकाबले में डाले गये मतों में से सर्वाधिक मत जुटा
लेने वाले दल को सरकार बनाने का अवसर मिलता है और वह दल संविधान के अनुसार शासन
चलाने के साथ साथ अपने विचारों को देश के विचार मानने लगता है, पर विकसित होते
लोकतंत्र में यथार्थ में स्थिति भिन्न होती है। देश के लिए यह बहुत ही
दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि केन्द्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनते ही
टोटकों की तरह वे सारे मुद्दे उठाये जाने लगे हैं जिनसे सामाजिक ध्रुवीकरण होता
है। महाराष्ट्र में भाजपा गठबन्धन वाली सरकार आने के बाद गोमांस पर प्रतिबन्ध
लगाने का जो फैसला हुआ है, वह एक राजनीतिक फैसला है, और इस फैसले की कूटनीति में गोबध
वाली धार्मिकता का दुरुपयोग किया गया है। नीचे दी जा रही जानकारी से स्पष्ट होता
है कि यह कदम केवल गोबध को अधार्मिक मानने वाले और न मानने वालों के बीच तकरार का
मुद्दा बनाने का प्रयास है। यह एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में धर्म विशेष के विश्वासों
को दूसरे पर लादने का प्रयास है।
रोचक
है कि यह फैसला आने के बाद गाय के महत्व और पक्ष में बड़े बड़े लेख लिखे जाने लगे
हैं और गूगल से सामग्री लेकर यह लेख वे लोग लिख रहे हैं जिनमें से अधिकांश जन्म से
लेकर अभी तक भैंस का दूध पीते आ रहे हैं और जिन्होंने कभी गाय नहीं पाली। देश में
कुल दुग्ध उत्पादन में गाय का दूध केवल तीस प्रतिशत है जिसमें बड़ा हिस्सा जर्सी
गायों का है। देशी गाय पालने वाले ज्यादातर लोग उनसे उत्पन्न दूध का उपयोग अपने
परिवार के लिए ही करते हैं। पुराण कथाओं के आधार पर गाय को पवित्र मानने वाले
हिन्दुओं में गोबध को पाप माना गया है इसलिए हिन्दू मांसाहारी जातियों में भी
गोमांस नहीं खाया जाता। उल्लेखनीय है कि अस्सी प्रतिशत हिन्दू जातियां मांसाहारी
हैं। मांसाहारियों में भी बध करने वाली जातियां अलग होती हैं, और उनके कर्म को
सम्मानजनक नहीं माना जाता। कसाई शब्द का प्रयोग गाली की तरह भी होता देखा गया है।
मांसाहारी जातियों में भी बहुत सारी महिलाएं शाकाहारी होती हैं। बहुत सारे लोग
जर्सी गाय को देसी गाय की तरह पवित्र नहीं मानते और बहुत सारे नीलगाय को भी, जिसे
रोज़ के नाम से भी जाना जाता है, गाय मानते हैं, और खेत उजाड़ने वाले इस जंगली पशु के
शिकार को बुरा समझते हैं। हालात यह हैं कि बीते चार साल में भारत में बीफ की खपत
में करीब 10 प्रतिशत की बढोत्तरी हुई है। 2011 में बीफ की खपत 20.4 लाख टन थी, जो
2014 में बढकर 22.5 लाख टन हो गई है। भारत बीफ निर्यात में विश्व में नम्बर 2 पर है।
केन्द्र में भाजपा शासन आने के बाद बीफ निर्यात में 15.58
फीसदी की वृद्धि दर्ज की गयी है। भारतीय कानून के अनुसार जवान और स्वस्थ पशुओं को
बूचड़खाने में कत्ल नहीं किया जा सकता है। भारत से जिन देशों को बीफ निर्यात किया
जाता है, वहां जवान और स्वस्थ पशुओं का आयात ही मंजूर होता है। ऐसे में या तो भारत
में कानून का उल्लंघन हो रहा है या दूसरे देशों में।
यह
जानना जरूरी है कि हमारे देश में गाय की औसत उम्र 16 वर्ष होती है और वह दस वर्ष
तक ही दूध देती है। उसके दूध देना बन्द कर देने पर उसे केवल भावनात्मक आधार पर ही
पाला जा सकता है आर्थिक आधार पर नहीं। जो लोग गाय के साथ भावनात्मक आधार पर नहीं
जुड़े हैं या जिनके विश्वासों में गाय भवसागर से पार लगाने का साधन नहीं है, -
हिन्दू पुराणों में कहा गया है कि गाय की पूंछ पकड़ कर वैतरणी पार की जा सकती है,-
वे दूध देना बन्द कर देने वाली गाय को बेच देते हैं जो अंततः बध करने वालों के पास
ही पहुँचती है। जो लोग गाय के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े हैं किंतु आर्थिक रूप से
उसे अनुत्पादक इकाई के रूप में पालने में असमर्थ हैं, वे बेचते नहीं पर उसे खुला
छोड़ देते हैं जो भी रास्तों में भटकते, अखाद्य का भक्षण करते हुए अंततः बध करने
वालों के हाथों में पहुँच जाती है या दुर्घटना ग्रस्त होती हुयी किसी ऐसी गौशाला
में पहुँचती हैं जिनका चारा स्वार्थी मनुष्य चरते हैं। अनेक गौशालाओं का संचालन धर्म विशेष के तुष्टीकरण के
लिए धर्मनिरपेक्ष सरकार के पैसे से होता है। जब से कृषि का मशीनीकरण हुआ है और
पशुओं से परिवहन कम हुआ है तब से बैलों का महत्व भी कम हुआ है।
देश के 29 राज्यों
में से 24 में
गौहत्या पर प्रतिबंध है, पर यह कागजी भर है। झारखंड, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर
प्रदेश और पंजाब में प्रतिबंध
के बावजूद गोबध हो रहा है।
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात
और राजस्थान से गायों की तस्करी की शिकायतें आती रहती है। पाकिस्तान के एक प्रतिनिधिमण्डल के अनुसार वहाँ बध होने
वाले सत्तर प्रतिशत पशुओं की तस्करी भारत से होती है। 2007 से 2012 के बीच लगभग 4
प्रतिशत गोवंश में कमी आयी है। एक सूचना के अनुसार भारत में रोज इकसठलाख किलो
गोमांस बिकता है जो तस्करी से पाकिस्तान भी जाता है।
राज्यसभा में महाराष्ट्र में गो वंश हत्या पर
रोक का विरोध तृणमूल काँग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने किया। उन्होंने कहा कि गोवंश
के मांस पर प्रतिबन्ध लगाना संविधान की मूल अवधारणा के खिलाफ है। देश में ईसाई,
मुसलमान, हिन्दू, दलित समुदाय सहित पूर्वोत्तर भारत में यह खाया जाता है। मुस्लिम
लीग के मुहम्मद ओवैसी ने कहा कि उनके धर्म में शराब को हराम माना गया है और अगर धार्मिक
विश्वासों के आधार पर फैसले हो रहे हैं तो देश भर में शराब की बिक्री पर प्रतिबन्ध
लगाया जाना चाहिए। जैनों का कोई राजनीतिक दल नहीं है अन्यथा उनके धार्मिक संगठनों
द्वारा तो पूरे मांसाहार पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग की जाती रही है और महावीर
जयंती के दिन कुछ राज्यों में बूचड़खाने बन्द रखे जाते हैं। वैसे तो किसी भी पशु का
बध सार्वजनिक स्थल पर नहीं होना चाहिए किंतु व्यक्तिगत कक्ष में जिसको जो खाना हो
उसे खाने देना चाहिए। वैसे भी कट्टर शाकाहारी लोग उन होटलों में खाना खाना भी
पसन्द नहीं करते जिनमें दोनों तरह का भोजन मिलता है, और मुस्लिम उन होटलों में
नहीं खाते जहाँ सुअर का मांस पकता है। और तो और कई जैन धर्मावलम्बी केवल शाखाहार
करते हैं अर्थात जमीन में पैदा होने वाले आलू अरबी, मूली, शलजम, गाजर अदरक और
हल्दी भी नहीं खाते तथा कुछ तो लाल रंग के कारण तरबूज भी नहीं खाते।
बहरहाल दुधारु
पशुओं का महत्व अपनी जगह है किंतु भाजपा और संघ परिवार द्वारा जिस तरह से एक धर्म
विशेष के विश्वासों को आधार बना कर यह फैसला लिया गया है उससे लगता है कि वे अपने
किये गये वादों को पूरा न कर पाने के कारण ध्यान भटकाने के लिए जो अप्रासंगिक मुद्दे
उठा रहे हैं यह भी उनमें से एक है।
वीरेन्द्र जैन
2 /1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के
पास भोपाल
म.प्र. [462023]
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