गुरुवार, फ़रवरी 14, 2019

मुलायम सिंह को अब आराम की जरूरत है?


 मुलायम सिंह को अब आराम की जरूरत है?

वीरेन्द्र जैन
सोलहवीं लोकसभा के अंतिम दिन समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव का यह कहना कि इस सदन के सभी लोग फिर से जीत कर आयें और हमारी पार्टी तो सरकार नहीं बना सकती इसलिए मोदी जी आप फिर से प्रधानमंत्री बनें, ने देश के राजनीतिक माहौल में हलचल मचा दी है। यह कथन इसलिए भी असंगत लगा क्योंकि इस समय पूरे देश के प्रमुख राजनीतिक दल मोदी को हटाने के लिए महागठबन्धन बनाने की ओर अग्रसर हैं और अनेक धुर विरोधी दल भी अपने मतभेद भुला कर एकजुट हो रहे हैं, तब मोदी को फिर से प्रधानमंत्री की औपचारिक कामना करने को भी गलत माना जाना स्वाभाविक है। इसका एक अर्थ यह भी निकलता है कि उनकी पार्टी की जीत न होने पर वे गैर भाजपा के किसी अन्य व्यक्ति के प्रधानमंत्री बनने की जगह मोदी को बेहतर मानते हैं। उनकी पार्टी में जो भी हैसियत शेष हो किंतु उपकृत जाति भाइयों में कुछ तो अपील बाकी है।
सोशल मीडिया पर अनेक लोगों के गुस्से के जबाब में मुलायम समर्थकों ने कहा है कि वे डिमेंशिया से पीड़ित हैं और भूल जाते हैं। उदाहरण के रूप में पिछले दिनों शिवपाल यादव के कार्यक्रम में अखिलेश की तारीफ, या शिवपाल यादव के उस बयान को सामने लाया जा रहा है जिसमें उन्होंने मुलायम सिंह को कैद में बताया था। उनके कुछ पक्षधर इसे उनकी राजनीतिक पहलवानी का चरखा दांव बता रहे हैं। दूसरी ओर उनके आलोचक इसे सीबीआई के दबाव का परिणाम बताते हुए उनके उस बयान की याद दिला रहे हैं जिसमें उन्होंने अपनी पार्टी वालों को अमर सिंह के सहयोग के महत्व को बतलाते हुए कहा था कि जिसके बिना सात साल की कैद हो सकती थी। प्रकरण अभी भी सीबीआई के झरोखे से अवसर की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
मुलायम सिंह को लोहियावादी कहा जाता रहा है किंतु सत्ता के लिए चुनावी राजनीति में जोड़ तोड़ करते हुए ना तो उन्हें लोहियावाद की दार्शनिक व्याख्या करते हुए सुना गया ना ही उनके राजनीतिक व प्रशासनिक फैसलों में लोहियावाद को अलग से रेखांकित किया जा सकता है। उनका लोहियावाद केवल लाल टोपी तक दिखता है। वे युवा काल में जुझारू और निर्भीक रहे हैं और इसी कारण से उनके आसपास के युवा उन्हें नेता मानने लगे थे। उन्होंने कुश्ती में जसवंतनगर के नत्थूसिंह का दिल जीत लिया था और पुरस्कार में उनकी विधानसभा सीट पायी थी। तब से उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उत्तर प्रदेश में कभी समाजवादी आन्दोलन ही मुख्य विपक्ष की तरह उभरा था व सत्ता विरोधी अनेक युवा उसके साथ चलने लगे थे। वे भी विचार के साथ नहीं अपितु संगठन के साथ थे और अपने देशज व्यवहार से वे सदैव निजी नेतृत्व वाला संगठन बनाने में सफल रहे। चौधरी चरण सिंह के साथ से पिछड़े वर्ग को राजनीति की मुख्यधारा में लाने और हिन्दू साम्प्रदायिकता से सतर्क मुस्लिम समाज को मिला कर चुनाव में उनकी जीत का आधार तैयार होता रहा है। मण्डल कमीशन से जागृत व संगठित पिछड़ा वर्ग तथा अयोध्या में रामजन्मभूमि विवाद के सहारे ध्रुवीकरण की कोशिश करने वालों के सामने कोई कमजोरी न दिखा कर उन्होंने मुस्लिम समाज को अपनी ओर आकर्षित कर लिया था। अपने मुख्यमंत्री काल में उन्होंने अपनी जाति के लोगों को किसान मजदूर से ठेकेदार और खानमालिक बना दिया था व सवर्ण समाज की ओर होने वाले धन व शक्ति के प्रवाह को मोड़ दिया था। पंचायत के पदों से लेकर नगरपालिका, जनपद पंचायत, एमएलसी, या पुलिस, होमगार्ड, सशस्त्र बलों में अपनी जाति या पिछड़ा वर्ग के लोगों की भर्ती कर के उन्होंने स्थायी समर्थक बना लिये थे। प्रशासन में प्रमुख पदों पर निजी पसन्द के अधिकारियों की नियुक्ति कर उन्होंने मनमानी का माहौल बना लिया था व लोकतांत्रिक व्यवस्था में जन समर्थन के सहारे केन्द्र में भी अपना स्थान बना लिया था। अमर सिंह के साथ ने उनके राजनीतिक कौशल की कमी की पूर्ति कर दी थी और उनको प्राप्त समर्थन की ताकत को राजनीति के बाज़ार में अच्छे सौदे के साथ ले जाने लगे थे।
अमर सिंह के निर्देशन में वे राजनीति में विचार, मानवीयता, बफादारी से दूर होते गये और निरंतर अवसरवादी फैसले लेते गये। वीपी सिंह का साथ नहीं देना, सोनिया गाँधी को विदेशी मूल के नाम पर अचानक समर्थन देने से पलट जाना और अटल बिहारी का मार्ग प्रसस्त कर देना। राष्ट्रपति के चुनाव में भाजपा काँग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन देना व वामपंथियों के उम्मीदवार का प्रतीकात्मक समर्थन भी न देना, 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की परोक्ष मदद से सरकार बना लेना, लखनऊ में अटल बिहारी वाजपेयी के चुनाव में उनके प्रतिनिधि द्वारा साड़ी वितरण के समय मची भगदड़ में कई औरतों के मारे जाने पर पीड़ितों की जगह अटल जी के यहाँ पहुँचना, यूपीए सरकार से वामपंथियों द्वारा न्यूक्लियर डील पर समर्थन वापिस लेने पर पहले उनके साथ आम सभाएं करना और अचानक मतदान के समय पक्ष परिवर्तन कर लेना, उत्तराखण्ड आन्दोलनकारियों पर रात्रि में सोते समय गोलियां चलना व महिलाओं के साथ बलात्कार होना, आदि ऐसी सैकड़ों घटनाएं हैं जो कोई समाजवादी नेता नहीं कर सकता। 2012 के चुनावों में बिना मुख्यमंत्री घोषित किये हुए चुनाव लड़ना और अचानक अखिलेश को मुख्यमंत्री घोषित कर देना। अमर सिंह को वापिस पार्टी में लेकर राज्यसभा में भेज देना। सत्ता को अपने परिवार तक के घेरे में बनाये रखना आदि ऐसे अनेक काम हैं जो उनकी टोपी के रंग से मेल नहीं खाते। वे केन्द्र में सत्तारूढ दल के आगे झुकने को विवश हैं, इसलिए पता नहीं मौका देख कर अपने जाति समर्थन को किस जनविरोधी के चरणों में डाल दें।
अगर मुलायम सिंह अस्वस्थ हैं तो उन्हें स्वास्थलाभ हेतु आराम और अमर सिंह शिवपाल आदि से दूर रहने की जरूरत है। यही देश के हित में भी है। यह समाजवादी पार्टी के लोगों को भी चेतने का समय है।
वीरेन्द्र जैन
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