शनिवार, नवंबर 01, 2014

स्वच्छ भारत अभियान का निहितार्थ



स्वच्छ भारत अभियान का निहितार्थ
वीरेन्द्र जैन
स्वच्छता सुन्दरता की पहली सीढी है। ब्रेख्त ने कहा है- सुन्दरता संसार को बचायेगी।
गालिब के इस व्यंग्य में दर्द था कि- दरो-दीवार पर उग आया है सब्जा गालिब, हम बियावाँ में हैं और घर में बहार आयी है. या- है खबर गर्म उनके आने की, आज ही घर में बोरिया न हुआ।
श्रीलाल शुक्ल के कालजयी व्यंग्य उपन्यास रागदरबारी में लोग जगह जगह खुले आम ठोस द्रव बहाते दिखते हैं या सड़क के किनारे औरतें गठरी बनी बैठी हुयी रहती हैं। मैथली शरण गुप्त के अहा ग्राम्य जीवन के आदर्श सौन्दर्य के विपरीत इस यथार्थवादी कृति में गाँव के कुछ घूरे, घूरों से भी बदतर मिलते हैं। यह सभी गाँवों की कहानी है।
आमिरखान और विद्या बालन कई वर्षों से पर्यटकों के विकर्षण या बाहर शौच करने से होने वाली बीमारियों के बारे में स्वच्छता के महत्व का सूचना माध्यमों के द्वारा प्रचार कर रहे हैं। विन्देश्वरी पाठक ने तो सुलभ शौचालयों के माध्यम से देश में जो काम किया है उसका डंका दुनिया भर में बजा है, क्योंकि इस अभियान ने परोक्ष में सिर पर मैला ढोने की प्रथा से मुक्ति दिलाने की ओर भी कदम बढाया है। प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का स्वच्छता अभियान कोई नया अभियान नहीं है, किंतु, इस अभियान ने उसी तरह सर्वाधिक ध्यान आकर्षित किया है जिस तरह से कि पतंजलि के योग का प्रचार भले ही दशकों पहले धीरेन्द्र ब्रम्हचारी भी दूरदर्शन पर कर चुके हों पर नई पीढी उसे बाबा रामदेव द्वारा अविष्कृत समझ कर चल रही है क्योंकि उन्होंने उसके सही ग्राहकों के बीच उनके सर्वथा उपयुक्त प्रचार माध्यमों के द्वारा सही समय पर प्रचारित किया।
खुश्बू को फैलने का बहुत शौक है, मगर
मुमकिन नहीं हवाओं से रिश्ता किये बगैर
मोदी भी इन दिनों देश के सर्वाधिक प्रचार कुशल नेता हैं, और जैसा कि राहुल गाँधी ने काँग्रेस के एक अधिवेशन में स्वीकारा था कि हमारे विरोधी गंजों को भी कंघी बेच सकने का कौशल रखते हैं। यही उनकी सफलता का राज भी है। दैनिक भास्कर भोपाल में प्रकाशित एक सूचना के अनुसार मोदी ने अपनी प्रारम्भिक अमेरिका यात्रा के दौरान प्रचार का कोई डिप्लोमा भी लिया था। बहरहाल नकारात्मक आधार पर चर्चाओं में बने रहने के बीच एक सकारात्मक कार्यक्रम के आधार पर जनता के बीच जाना एक अच्छा कदम है और लोकप्रियता की परीक्षा भी है।
सफाई किसे पसन्द नहीं होती। कहावत है कि कुत्ता भी अपने बैठने की जगह को पूँछ से साफ करके बैठता है। हम देखते हैं कि हिन्दुओं में दीवाली के समय, मुसलमानों में ईद के समय, मलयाली लोगों में ओणम के समय और बंगालियों में दुर्गापूजा के समय अपने अपने घरों को सिरे से साफ करने और सजाने की परम्परा है। पर यही समय इनके परिवेश के सबसे अधिक गन्दा होने का समय भी होता है क्योंकि लोग अपने घर का कचरा साफ करके सड़कों, गलियों में फेंकते रहते हैं जिन्हें छुटभैये नेताओं की लूट के संस्थानों में बदल चुकी नगरपालिकाएं तुरंत साफ कराने में सक्षम नहीं होतीं। भारत स्वच्छ अभियान का मुख्य मुद्दा व्यक्तिगत स्वच्छता से ऊपर उठकर सार्वजनिक स्थलों को उसी तरह से स्वच्छ रखने की भावना का विकास करना है। इस अभियान का लक्ष्य लोगों को यह सन्देश पहुँचाना भी है कि परिवेश को स्वच्छ रखे बिना अपनी और अपने घर की स्वच्छता का लाभ दूरगामी नहीं हो सकता।
       इस देश में अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमण्डल में केबिनेट मंत्री कुमार मंगलम की मृत्यु राजधानी के एक नामी अस्पताल में मलेरिया से हो जाती है व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के दो रिश्तेदारों को डेंगू हो सकता है तो स्पष्ट है कि व्यक्तिगत स्वच्छता काफी नहीं होती। कोई कितना भी एसी कमरों में बन्द रह ले या बन्द एसी गाड़ियों में यात्राएं करता रहे पर खुली हवा में तो कुछ देर आना ही पड़ेगा। और यदि परिवेश गन्दा है तो व्यक्तिगत स्वच्छता का लाभ कमजोर हो जाता है। गन्दे नाले के पानी से धुली बाज़ार में बिकती सब्जियां, हमारे वाटर प्यूरीफायर के उपयोग को बेकार कर देती हैं।
इस अभियान की सफलता, व्यक्तिगत को सामाजिक बना सकने की सफलता से जुड़ी है। इस तरह यह आन्दोलन एक सामाजिक आन्दोलन ही नहीं एक राजनीतिक आन्दोलन भी है। विडम्बना यह है कि इसे एक दक्षिणपंथी और साम्प्रदायिक माना जाने वाला दल संचालित करने चला है जिसने सदैव ही व्यक्तिगत हित को सामाजिक हित से ऊपर माना है, व एक सम्प्रदाय के हितों को दूसरे सम्प्रदाय के हितों से ऊपर माना है। सातवें दशक में जब सार्वजनिक क्षेत्रों का विकास किया जा रहा था तब सार्वजनिक क्षेत्र की सबसे बड़ी विरोधी भाजपा ही थी जिसका उस समय नाम जनसंघ था, और जो स्वतंत्र पार्टी की सहयोगी थी। इस पार्टी ने अपना विस्तार बैंकों के राष्ट्रीयकरण और पूर्व राजाओं के प्रिवी पर्सों व विशेष अधिकारों को समाप्त करने से प्रभावित उस दौर के पूंजीपतियों और पूर्व समंतों के प्रवक्ता बन कर किया था। केन्द्र में जब जब इनकी सरकार रही तब तब इन्होंने सार्वजनिक क्षेत्रों को बेचने का ही काम किया और मोदी सरकार ने भी वही काम प्रारम्भ कर दिया है। उल्लेखनीय है कि अटल निहारी वाजपेयी की सरकार दुनिया की ऐसी इकलौती सरकार थी जिसने सार्वजनिक क्षेत्र को बेचने के लिए विनिवेश मंत्रालय बनाया था।
स्वच्छता एक मनोवृत्ति है और सफाई उसका प्रकटीकरण है। अगर मनोवृत्ति सही नहीं होगी तो प्रकटीकरण केवल दिखावा हो कर रह जायेगा। इसलिए स्वच्छता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए व्यक्तिगत हित की भावना को सामाजिक हित की भावना में बदलने के क्रांतिकारी कदम उठाने होंगे, अन्यथा सारी कार्यवाही सतही और दिखावटी हो कर रह जायेगी। सत्तारूढ दल को सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार तभी मिल सकता है जब वह अपने संगठनों को सार्वजनिक हितों के लिए सक्रिय कर सके। इस की कमी ही काँग्रेस सरकारों की असफलता का कारण बनी पर क्या दूसरी सरकारें इससे कुछ सबक लेने को तैयार हैं?
वीरेन्द्र जैन                                                                           
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