इस आदमी की
ज़ामातलाशी तो लीजिए
वीरेन्द्र
जैन
अखबार
में कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब कोई बाबा, पुजारी. संत, महंत, पादरी, मौलवी, योग
गुरु, ज्योतिषी, चमत्कारी, या किसी न किसी पंथ की एजेंसी रखने वाला किसी अपराध में
न पकड़ा जाता हो। मजे की बात यह है कि इन अपराधियों की पक्षधरता करने वाले वे लोग
होते हैं जिनको ठगे जाने का नम्बर अभी नहीं लगा है और यह काम भविष्य में होने वाला
है।
जनसत्ता
[10 नवम्बर 2014] में प्रकाशित समाचार के अनुसार पंजाब के मोहाली में पुलिस ने नवादा
बिहार निवासी मन्दिर के एक ऐसे महंत को गिरफ्तार किया है जो मृत घोषित किया जा
चुका था और उसकी कथित हत्या के आरोप में पाँच आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा
सुनायी गयी थी जिनमें से चार सगे भाई हैं। 1984 में उनके पिता की हत्या के आरोप
में इसी कथित मृत फर्जी संत को सजा हुयी थी। 1994 में जमानत मिलते ही यह व्यक्ति
गायब हो गया था व मोहाली के एक गाँव के मन्दिर में महंत बन गया था। योजना अनुसार
उसके पुत्र ने अपने पिता की कथित हत्या के आरोप में उक्त पाँच लोगों पर आरोप लगाया
व गिरफ्तार करा दिया। उसने अपने ड्रामे को विश्वसनीय बनाने के लिए पिता का श्राद्ध
भी किया। ये आरोपी लम्बे समय से न्यायिक प्रक्रिया में उलझे रहे और लम्बे समय तक
जेल काटी बाद में जब उन्हें पटना हाईकोर्ट से जमानत मिली तो उन्होंने स्वयं जाँच
की और पाया कि कथित मृतक के बेटे बार बार पंजाब जाते हैं। खोज करने पर उन्हें पता
चल गया कि वह हत्यारा व्यक्ति गोपालदास के नाम से मन्दिर का महंत बना बैठा है।
पिछले दिनों तहलका में अयोध्या के महंतों के बारे में विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित
हुयी थी जिसमें बताया गया था कि वहाँ सैकड़ों की संख्या में पूर्वी उत्तर प्रदेश,
बुन्देलखण्ड, चम्बल, बिहार आदि के फरार अपराधी साधु भेष धरे मुफ्त की मलाई खा रहे
हैं और सेवा करवा रहे हैं। गत वर्ष मध्य प्रदेश में एक मस्ज़िद के इमाम ने रिपोर्ट
दर्ज करवायी थी कि घृणा के कुछ प्रचारक जिनके आतंकी समर्थक होने का संदेह है जमात में शामिल होकर घूम रहे
हैं व मस्जिदों में ठहर रहे हैं। खालिस्तानी आतंकियों को अगर स्वर्ण मन्दिर में
आश्रय न मिला होता तो न तो आपरेशन ब्लूस्टार जैसी घटना घटती और न ही देश की
तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या होती। पिछले वर्षॉं में मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर
में एक साध्वी के निर्माणाधीन आश्रम में राजस्थान का एक हत्यारा पकड़ा गया था।
पिछले
दिनों चले स्वच्छता अभियान में गुजरात से भाजपा सांसद और ओह माई गाड जैसी फिल्मों
के अभिनेता परेश रावल ने कहा था कि हमारे मन्दिरों में सबसे अधिक गन्दगी रहती है
और वहाँ सफाई की ज्यादा जरूरत है। इसी क्रम में अगर आगे बढा जाये तो कहा जा सकता
है कि धार्मिक संस्थान जनता की सबसे अधिक श्रद्धा के केन्द्र हैं और वहाँ भी सफाई
की जरूरत है। स्वच्छता की परिभाषा हमारे समाज की नैतिकता से जुड़ी है। स्वच्छता का
मतलब है कि जैसा होना चाहिए वैसा नहीं होना, और वैसा बनाने के लिए जो भी अवांछित
है उसे हटाना। अगर धर्म के क्षेत्र में भी उसके आचरणों व आदर्शों से विचलित अनावश्यक
लोग अतिक्रमण करके गन्दगी फैला रहे हैं तो उन्हें हटाने का काम किया जाना चाहिए
ताकि मानव श्रद्धा के केन्द्रों को स्वच्छ किया जा सके। उल्लेखनीय है कि पिछले
वर्ष जब आसाराम को एक किशोरी के यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार किया गया था तब
भाजपा के बड़े बड़े नेता जिनमें से कई आज केन्द्र में मंत्री भी बने बैठे हैं, उनके
पक्ष में खड़े हो गये थे। संयोगवश हमारे आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उनके
पक्ष में नहीं थे और उसी दौरान उन्हें प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी चयनित किया गया
था जिसके लिए सबका एक सुर में बोलना अनिवार्य बना दिया गया था। यही कारण रहा कि
उन्हें चुप्पी ओढना पड़ी, यदि ऐसा नहीं होता तो आज भाजपा के अनेक नेता उनकी
पक्षधरता के बहाने धर्मनिरपेक्षता विरोधी राजनीति कर रहे होते। स्मरणीय है कि जब
एक शंकराचार्य पर हत्या आदि के आरोप लगे थे और उनके जेल जाने की स्थिति बनी थी तब
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी समेत भाजपा के बड़े बड़े नेता कानून को अपना
काम करने देने की जगह दिल्ली में अनशन पर बैठ गये थे। जब आसाराम जी गिरफ्तार हो
गये और कानून व्यवस्था को जाँच की स्वतंत्रता मिली तो जाँच एजेंसियों को इतने सारे
तथ्य मिले कि अब लगता है कि पीड़ितों को अपेक्षाकृत बेहतर न्याय मिल सकेगा व अवैध
रूप से हथियायी हुयी चल अचल सम्पत्ति मुक्त हो सकेगी।
धर्म में
श्रद्धा रखने वालों को यह बात समझने की जरूरत है कि नकली भेष धारण कर धर्म के नाम
पर अनेक लोग उसके स्वयंभू ठेकेदार बन व्यापार कर रहे हैं जो धर्म की मूल भावना को
नुकसान पहुँचा रहा है। यदि इस तंत्र में से गलत, अपराधी, और धनपशुओं को दूर कर
दिया जाये तो वह अधिक दया, करुणा, और मानवीय मूल्यों से युक्त हो सकेगा। तुलसीदास
ने रामचरित मानस में कहा है कि- परहित सरस धरम नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।
जो
धर्म करोड़ों लोगों की श्रद्धा का केन्द्र है, जिसके नाम पर लोग मरने कटने को तैयार
हो जाते हैं और जो देश के लोकतंत्र से लेकर आंतरिक व बाह्य सुरक्षा तक को प्रभावित
कर रहा है उसे अपराधियों के हाथों में कैसे छोड़ा जा सकता है। उसकी स्वच्छता को
पहली प्राथमिकता पर रखा जाना चाहिए। जो लोग भी सच्चे संत और सन्यासी हैं उनका जीवन
पारदर्शी होना चाहिए व श्रद्धालुओं को यह पता होना चाहिए कि जीवन की कैसी कैसी
चुनौतियों का सामना करते हुए उन्हें अंतर्ज्ञान प्राप्त हुआ है। पौराणिक कथा
नायकों से लेकर महावीर, बुद्ध, ईसामसीह, रामकृष्ण परम हंस, विवेकानन्द, स्वामी
दयानन्द, गुरुनानक, मुहम्मद साहब, आदि सबका जीवनवृत्त खुला रहा है इसलिए यह जरूरी
है कि धर्मों से जुड़े लोगों का पूरा जीवनवृत्त उसके श्रद्धालुओं को ज्ञात हो।
कानून व्यवस्था के रखवालों का भी यह कर्तव्य बनता है कि वह ऐसे लोगों का जीवनवृत्त
पता करने के लिए स्थानीय पत्रकारों व जीवनी लेखकों को प्रोत्साहित करने हेतु
आवश्यक व्यवस्था करें व प्राप्त जानकारी की पुष्टि करें। कैसी विडम्बना है कि देश
के प्रधानमंत्री तक पहुँच रखने वाले व उनके शपथ ग्रहण समारोह में सम्मलित होने
वाले आचार्य बालकृष्ण की नागरिकता तक विवादित रही है व उन्हें इसके लिए पुलिस
प्रताड़ना भी सहनी पड़ी है। एक टीवी कार्यक्रम में कई कलाकारों के पूछने पर भी सर्वाधिक
सक्रिय बाबा रामदेव अपनी उम्र नहीं बताते।उन्होंने अचानक गायब हो गये अपने
परम्पूज्य गुरु के प्रति कभी सार्वजनिक चिंता प्रकट नहीं की और न ही इसके लिए
स्थानीय सरकार की आलोचना की।
सार्वजनिक
जीवन में रहने वाले लोगों का पूरा जीवन पारदर्शी होना चाहिए। दुष्यंत कुमार ने कहा
है- फिरता है, कैसे कैसे खयालों के साथ वो, इस आदमी की ज़ामातलाशी तो लीजिए।
वीरेन्द्र जैन
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मोबाइल 9425674629
आपकाे साधुवाद
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